आभासी जल का संरक्षण भी महत्वपूर्ण है - डॉ. जोशी |
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बड़वानी | |
क्या आप जानते है कि एक किलो गेहूँ को पकने में 2315 लीटर पानी, एक किलो चावल को 2500 लीटर, एक किलो आलू को 320 लीटर, एक कप चाय में आवश्यक चायपत्ती को 20 लीटर, एक गिलास दूध बनने में 200 लीटर पानी, की आवश्यकता होती है। शादी में भोजन की एक प्लेट में परोसी जाने वाली भोज्य सामग्री को खेत में तैयार होने में 2000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। भोज्य सामग्री को नुकसान होने से बचाकर इस आभासी जल की भी बचत कर सकते है। इलेक्ट्रानिक उपकरणों में उपयोगी माइक्रोचिप में लगने वाली धातुओं के निष्कर्षण में 5000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। एक व्यक्ति की प्रतिदिन की भोजन की आवश्यकता में 300 लीटर पानी की खपत होती है। अपनी घरेलू आवश्यकता की पूर्ति में पानी की मितव्ययिता द्वारा प्रतिदिन 400-500 लीटर पानी बचा सकते है। जैसे- दांत साफ करने, नहाने, (मग और बाल्टी का उपयोग करके) फर्ष व वाहनों को धोना आदि में पाइप का उपयोग न करके पानी की बचत करना, सब्जियों धोने के पानी, पोछे का पानी, कपडे धुलाई का पानी आदि का पुर्नउपयोग करना, डिटर्जेन्ट का उपयोग कम करना, सिंचाई में झारे या बाल्टी का उपयोग करना, कृषि में कम पानी की फसल लगाना, ड्रिप पद्वति का उपयोग, जल की खेती (खेतों में जल के एकत्रीकरण की व्यवस्था करके) आदि कई उपायों से पानी की बचत की जा सकती है। यह जानकारी डॉ ओपी जोषी देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इन्दौर ने पीजी कॉलेज में ‘‘कैच द रेन‘‘ थीम पर आधारित जारी व्याख्यानमाला में दी। कार्यक्रम के दूसरे वक्ता डॉ जेके मिश्रा (सेवा निवृत्त प्राध्यापक जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर) ने कहा कि वर्तमान समय में 3आर एवं 5ई की संकल्पना को ध्यान में रखकर कार्य करना चाहिए। 3आर का अर्थ है, आवश्यकता में कभी, प्राकृतिक संसाधनों का पुर्नउपयोग, व्यर्थ जल का पुनर्चक्रण एवं 5ई का अर्थ है, पर्यावरण, अर्थव्यवस्था, पारिस्थितिकी या इकोलॉजी, शिक्षा एवं नैतिकता। हमें जल की उपलब्धता के अनुसार अपनी आवश्यकताओं को सीमित करना होगा। इस अवसर पर वनस्पति विभाग की विभागाध्यक्षा डॉ वीणा सत्य ने स्वागत उद्बोधन दिया, जबकि नेहरू युवा केन्द्र के जिला युवा अधिकारी श्री नितेश कुमार सोनी ने कार्यक्रम की भूमिका प्रस्तुत की। वही कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ एनएल गुप्ता ने की। कार्यक्रम के सचिव डॉ पंकज कुमार पटेल ने अभार प्रदर्शन व कार्यक्रम का संचालन डॉ भूपेन्द्र भार्गव ने किया। |