होषंगाबाद:- हमारे जिले मै नही अपितु पूरे देष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में उज्ज्वला योजना की शुरुआत यह कहकर की थी कि इसका मकसद महिलाओं को जहरीले धुएं से बचाना है, लेकिन चूल्हा छोड़ने वाली एक बड़ी आबादी फिर उधर लौट रही है। घरेलू गैस की बढ़ती कीमतों ने गांवों में महिलाओं को फिर से चूल्हे की ओर ढकेला गैस की बढ़ती कीमतों की वजह से गांवों में महिलाएं फिर से चूल्हे पर खाना बनाने लगी है। पाँच-छह सौ रुपए में तो किसी तरह गैस भरवा लेते थे, अब तो एक सिलेंडर लगभग 900 रुपए में मिल रहा है। इतने में भराने की हिम्मत नहीं है। मध्य प्रदेश के जिला होष्ंागाबाद के पतलई गॉव में रहने वालीं कली के मुताबिक उन्हें पांच साल पहले उज्ज्वला योजना का गैस कनेक्शन मिला था। तब उन्हें लगा था कि अब गोबर के कंडे और लकड़ी से छुटकारा मिल जायेगा, लेकिन गैस के बढ़ते दामों ने हमें फिर मिट्टी के चूल्हे पर पहुंचा दिया है। कली एक प्राइवेट कंपनी में काम करती हैं जहां काम मिलने की कोई गारंटी नहीं है। एक सप्ताह में मुश्किल से 10-15 दिन काम मिलता है जिसके बदले कुछ रुपए मिलते है। दो बेटे हैं, वे भी काम की तलाश में रोज घर से निकलते तो हैं, लेकिन उन्हें भी रोज काम नहीं मिलता। छह सात महीने हो गए हैं गैस भराये हुए। लेकिन रोज-रोज महंगी होती गैस के कारण भराना ही छोड़ दिया। अब लकड़ी, गोबर के कंडे पर ही खाना पकाते हैं। पहले भी तो हम ऐसे ही खाना बनाते थे। केंद्र सरकार की रिकॉर्ड बुक के हिसाब से कली और रामरती 2016 में लॉन्च हुई प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना का लाभ पाने वाली 8 करोड़ भारतीयों में से एक हैं। इसके बाद सरकार ने एक बार फिर 2018-19 से 2020-21 में करोड़ रुपए आवंटित किया। उसे उज्ज्वला गैस कनेक्शन का नाम दिया गया है, लेकिन उन्होंने पिछले चार महीने से सिलेंडर नहीं भराया है। सरकार का यह भी दावा है कि इस योजना की मदद से देश की कुल 95 फीसदी आबादी को एलपीजी गैस कनेक्शन मिल पाया है। सरकार इसे अब 100 फीसदी करना चाहती है। इसे ही ध्यान में रखकर आने वाले दो वर्षों में इस योजना के तहत और एक करोड़ और गैस कनेक्शन देने की घोषणा केंद्र सरकार ने की है। कोरोना की वजह से पहले से ही उनका काम बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ है। कमाई न के बराबर है। साल 2018 में उनके घर को भी उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन मिला था, लेकिन 5 महीने से उन्होंने सिलिंडर रिफिल नहीं करवाया है। पूछने पर बताते हैं, बेटे दोनों बाहर मजदूरी करते हैं। कारोना काल मे काम भी न के बराबर चल रहा है। ऊपर से हर महीने तो गैस का दाम बढ़ जा रहा है। अब तो कीमत इतनी हो गई है कि भरवाना मुश्किल हो गया है। जब कनेक्शन मिला था तब तो 500-600 के सिलेंडर पर 200-300 रुपए की सब्सिडी भी मिलती थी, लेकिन अब तो वह भी बंद है। पिछले 8 महीनों से कोई सब्सिडी खाते में नहीं आई। कई बार एजेंसी पर पूछा तो उन्होंने कहा कि पैसे तो भेजे जा चुके हैं। अब बात बस इसी साल की करें तो जनवरी से लेकर मार्च तक घरेलू गैस की कीमत 125 रुपए बढ़ी है। 4 फरवरी को रसोई गैस सिलेंडर की कीमत 25 रुपए बढ़ाई गई थी। इसके बाद 15 फरवरी को 50 रुपए का उछाल आया। फिर 25 फरवरी को 25 रुपए और 1 मार्च को भी इतने ही रुपए बढ़ाए गए थे। तब 14.2 किलो वाले घरेलू रसोई गैस सिलेंडर की कीमत 917.50 रुपए हो गई थी जो 4 फरवरी से पहले 767 रुपए थी। हालांकि एक अप्रैल को आम लोगों को थोड़ी राहत तब जरूर मिली जब गैस की कीमत में 10 रुपए कटौती हुई। इस समय 14.2 किलो वाले घरेलू रसोई गैस सिलेंडर की कीमत 847 रुपए है जबकि जून 2020 में यही कीमत 636 रुपए थी। लॉकडाउन के समय सरकार ने उज्ज्वला योजना के तहत सिलेंडर फ्री में देने का ऐलान किया था, फिर भी लोगों ने सिलेंडर रिफिल नहीं कराय जब गैस सिलेंडर मिला था तो लगा था अब चूल्हे के धुएं से आंखों को आराम मिलेगा। एक दो बार गैस सिलेंडर किसी तरह भरवा भी लिया था लेकिन बढ़ती महंगाई ने अब गैस सिलेंडर भरवाना बंद कर दिया है। पैसे से और भी व्यवस्था करनी पड़ती है। लकड़ी और गोबर कंडे गैस से सस्ता पड़ा रहा है। हमारे यहां लगभग 27,000 कनेक्शन हैं जिसमें लगभग 20 हजार कनेक्शन उज्ज्वला योजना के तहत दिए गए हैं। हर महीने लगभग 9,000 सिलेंडर की ही डिलीवरी हो रही है। इस बार तो होली पर भी लोगों ने सिलेंडर रिफिल नहीं कराया जबकि एजेंसी से लोगों को फोन भी किये गये। पैसे की कमी बताकर लोगों ने रिफिल कराना कम कर दिया है।
लाभार्थी अभी भी खाना पकाने के लिए पारंपरिक लकड़ी के चूल्हों का उपयोग कर रहे थे। लोगो को सब्सिटी का पैसा भी खाते में नही आ रहा है जिसके चलते गरीब परिवार को काफी दिक्कत का सामना करना पढ रहा है। आखिर आम परिवार चूल्हे पर खाना पकाने के लिए मजबूर हो गये है देखना है कि कब इनको मंहगाई से राहत मिलेगी एलपीजी कब रेट कम होगे।