होष्ंागाबाद:- नगर होषंगाबाद धार्मिक नगरी होने के साथ साथ आस्था का भी एक केन्द्र है। कुछ समय से घाटो और अन्य जगहो पर षहर में बंद हुई भिक्षावृति एक बार फिर से षुरू हो गई है। मौसम कैसा हो धूप और या ठंड हो, आम उगलती सूर्य की लपटों के बीच महिलाएं बच्चों को गोद में लेकर पैसा मांगती है। आखिर सोचने की बात है कि ये आखिर कैसी मां हैं जो अपने बच्चे को गोद में तपा रही है ? कथित मांओ के गोद में पड़े इन मासूमों को षायद ही किसी ने हंसते और रोते देखा - सुना होगा। ये मजबूरी है महज कमाई का जरिया! षासन के जिम्मेदार खामोष है? षहर में अब यह काम आम बात हो चुकी है। इसी तरह घाटो पर तीज त्यौहार आते ही या फिर कोई जयंती में मासूमों को मानवीय संवदेनाओं का कत्ल करते हुए तथाकथित माताएं भीख मांगते देखी जा सकती हैं। सबसे बड़ी एहम बात बच्चों की है तो लोग पसीज जाते है और अपने जेब से पैसा निकालकर दे देते है। लेकिन असल में जिम्मेदार अब तक मौन बने क्यो बने हुए हैं ?
शासन का इस ओर ध्यान दे कि कोरोना संक्रमण काल में भी षहर के बीचों बीच चैक चैराहों पर भिक्षावृति चल रही है। गोद में लेकर महिलाएं इनको दिनभर चैक चैराहें पर घूमती हैं। लेकिन इन बच्चों के मुंह से आह तक नहीं निकलती है। इन बचें को न भूख लगती है न प्यास लगती है। यह बच्चे गर्मी, बरसात और ठण्ड का अहसास ही नहीं होता। ष्षहर के व्यवसायिक इलाकों और नर्मदा के घाटो पर खास तौर से इनके आसपास ऐसी महिलाओं और उनके गोद में पड़ें खामोष बच्चों की फौज दिन ब दिन बढ़ते जा रही है। ये माएं गोद में उनींदे पड़े बच्चों के भूखे होने की बात कहकर लोगों से रूपया मांगती हैं। इससे कुछ घंटों में ही मासूमियत का चेहरा दिखाकर सौ पाॅच रूपये की वसूली कर लेती है। ऐसे लोगो को मांगने के लिए अलग- अलग शहर मे अलग ठीहे बनाती है। उक्त महिलाओ और परिवार इनको खाना नहीं सिर्फ पैसा चाहिए
महिलाओं को जब रहागीर पैसों की जगह खाना देते हैं तो यह महिलाए खाना खाने से मना कर देती है। जो सीधे ही पैसों की मांग करती हैं। अब तो सुबह से लेकर ष्षाम तक पाॅष इलाकों में बनी दुकाने इनका ठिकाना होती हैं। सुबह से ष्षाम होने के बाद रात में मंदिर इनके लिए पैसा मांगने का नया अड्डा होता है। दूसरी तरफ इसी गैंग में ष्षामिल अन्य लोग दोपहर के वक्त बस स्टेण्ड और रेलवे स्टेषन पर रूकने वाली गड़ियों से पैसा मांगती हैं।
सामाजिक न्यांय विभाग के अधिकारियों को संयुक्त रूप से करना हैं, लेकिन आष्चर्य की बात यह है कि आज तक किसी भी भिखारी को पकड़ा नहीं गया है। उक्त विभाग में पदस्थ कर्मचारीयो को उनको वाटषाप मोबाइल व अन्य शासकीय कार्यो में व्यस्त रखने की बात कह कर अपना पल्ला छाड लेते हैं आखिर सरकार लाखो करोडो रूपये इनकी तन्खा पर खर्च करती है मागर अपने तायित्व का निर्वाहन विभाग में पदस्थ कर्मचारीया कब करेगे देखना है ? या फिर यह खेल इसी तरह चलता रहेगा हमारे समाज को विकलांग और अपाहिज बनाने से रोक पायेगे कि नही या फिर भिक्षावृत्ति इसी तरह होती रहेगी ?