शिवमहापुराण में कार्तिकेय व गणेश भगवान की उत्पत्ति की कथा सुन श्रोता हुए भावविभोर

शिवमहापुराण में कार्तिकेय व गणेश भगवान की उत्पत्ति की कथा सुन श्रोता हुए भावविभोर


चायल (कौशाम्बी)। विकास खंड नेवादा के तिल्हापुर गांव स्थित ब्रह्मचारी आश्रम में चल रही शिवमहापुराण कथा के चौथे दिन कथावाचक आचार्य प्रभाकर महराज ने भगवान कार्तिकेय व भगवान गणेश की उत्पत्ति की कथा सुनाई।विघ्नहर्ता भगवान गणेश व कार्तिकेय के उत्पत्ति की कथा सुन श्रोतागण भावविभोर हो उठे।
 
    कथावाचक आचार्य प्रभाकर महाराज ने शिवमहापुराण की कथा सुनाते हुए श्रोताओं को बताया कि भूतभावन भगवान भोलेनाथ का तेज यानि वीर्य जब पृथ्वी पर गिरा तो पृथ्वी व्याकुल हो गई।पृथ्वी को व्याकुल देख भगवान शिव के तेज को अग्नि ने खा लिया।ऋषियों की छ पत्नियों ने अग्नि को तप करके पा लिया।चूंकि शिव के तेज को अग्नि ने खा लिया था इसलिए ऋषियों की पत्नियां भी उस तेज यानि वीर्य को सहन न कर पाईं और गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया।मां गंगा भी भगवान का तेज नहीं सहन कर सकीं तब उन्होंने किनारे पर उगे हुए सरकंडों यानि सरपत मे भगवान शिव के तेज को फेंक दिया नदी किनारे फेंके गए उसी तेज से भगवान शिव के बड़े पुत्र स्कंद भगवान की उत्पत्ति हुई।चूंकि भगवान स्कंद का पालन पोषण छ कृतिकाओं ने किया इसीलिए कृतिकाओं द्वारा पालन पोषण किये जाने के कारण ही आगे चलकर इनका नाम भगवान कार्तिकेय पड़ा।विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी की उत्पत्ति के विषय में आचार्य जी ने श्रोताओं को कथा सुनाते हुए बताया कि भगवान गणेश जी का जन्म माता पार्वती जी के शरीर के मैल हुआ है।भगवान गणेश जी का सिर भगवान शिव जी ने काट डाला था।पुत्र का सिर अपने पति द्वारा काट डालने से जब पार्वती अत्यधिक क्रोधित हो उठीं तब भगवान शिव ने हाथी का सिर काटकर भगवान गणेश जी के धड़ में लगा दिया।
चौथे दिन की कथा सुनाते हुये आचार्य जी ने उपस्थित श्रोताओं को विशेष बात यह बताई कि गणेश जी का वास्तविक सिर चंद्रदेव अपने पास उठा ले गए।इसी कारण गणेश चतुर्थी का ब्रत करने पर माताओं के द्वारा चंद्रमा का दर्शन करके अर्ध्य देने की परंपरा बनी है।माताएं अपने पुत्रों की दीर्घायु के लिए अर्ध्य देकर गणेश जी के वास्तविक स्वरूप की पूजा करती हैं।इसीलिए माताओं द्वारा किये ब्रत से उनके पुत्रों की रक्षा होती है।
- चायल कौशाम्बी से पवन मिश्रा की रिपोर्ट